भारत में जातिप्रथा और जातिप्रथा-उंमूलन Cast System of India in Hinduism AKP Pin2 vs Sunil Aajivak
भारत में जातिप्रथा और जातिप्रथा-उंमूलन
सुनील आजीवक साहब जय भीम जय हिन्द, आपके सवालों का जवाब है कि दोनों बातें सही है।
आपके #सवाल हैं - इन बातों में कौनसी बात सही है।
सवाल १) वस्तुत: हिंदू समाज नामक कोई वस्तु है ही नहीं! (भारत में जातिप्रथा और जातिप्रथा-उंमूलन, 1936)
लेखक - #बाबा_साहेब_अंबेडकर
किताब : भारत में जातिप्रथा और जातिप्रथा-उंमूलन
पहला संस्करण 1993, नवीन संस्करण 2019
![]() |
| Cover page Bharat me Jatipratha |
सवाल २) सन् 1950 में सेडयुल कास्ट धर्म के कालम में #हिंदू लिखेगा, तभी उसे #अनुसूचित_जाति माना जाएगा! (भारत के राजपत्र 1950)
जारी : भारत सरकार (कांग्रेस सरकार)
आशा करता हूं कि मेरा #जवाब आपके ज्ञान को और बढ़ा दे। समझिए -
जवाब प्रमाण: १) आपको पता होगा कि पेज 57 की जो बात आप कर रहे हैं वह बात 1993 में हिंदी में प्रकाशित हुई। बात संबंधित है जातिप्रथा से।
#जातिप्रथा जिसके कारण जातिभेद, छुआछूत, और समाजिक बहिष्कार, असंगठित समाज जैसे समस्या उत्पन्न थी और आज भी कहीं कहीं इसके कारण दंगे, झगड़े होते रहते हैं।
![]() |
| Page 41 |
२) आपने पेज 41 के लाहौर के लिए लिखे गए 1936 के भाषण के नंबर 6 पैरा जो पेज 57 से 59 तक के पूरे हुए, पढ़ा। आप उस बीच यह समझ गए होंगे कि #हिंदू_समाज जो 1936 से पहले तक और आज तक जातिप्रथा, जो एक प्रथा (रिति-रिवाज) है, चला रहा है। उसे तोड़ने की बात नहीं करता। ना ही छोड़ने की बात करता है। सिर्फ उसके कारण उत्पन्न होने वाली समस्या पर बात की गई है।
![]() |
| Page 57 |
३) बाबा साहेब कहते हैं कि #हिंदू_शब्द ही विदेशी मुसलमानों के द्वारा भारत के उन जाति जनजाति समूहों को दिया गया जो इस्लाम नहीं मानते हैं। मुस्लिमों से पहले कोई हिन्दू था ही नहीं, कोई विशेष समुदाय नहीं थे जो अपने समान समझते/मानते। लेकिन जब हिन्दू शब्द भारतीय समाज के लिए प्रयुक्त हुआ, तब भी वे बिखरे समाज एक नहीं हो सका। एकता सिर्फ हिन्दू मुस्लिम दंगों तक ही या राष्ट्रभक्ति पर ही हिंदू एकता आती है, त्यौहारों पर्वों तक ही हिंदू होते हैं। उसके बाद जातियों और समाजों तक ही सीमित हो जाते हैं।
![]() |
| Page 58 |
४) आपने पूरा पैरा पढ़कर समझा होगा कि पेज 57 में कही गई बातें सही है आज भी लोग जाति समाज तक ही सोच पाता है, दूसरे समाज तक नहीं पहुंच पाता, सोच सीमित हो जाती है। अलग-अलग रहन सहन वेष भूषा सब एक पहचान ही थे। लेकिन वे हिंदू बनकर भी जातिभेद और प्रथा से ग्रसित थे और हैं। जो आज भी कभी कहीं हानिकारक बन जाता है। बाबा साहेब ने सिर्फ जातिप्रथा से होने वाले नुक़सान ही गिनाए हैं। कहा है कि हिंदू समाज में जातियों के आधार पर पहनावा भी पर्यटकों के लिए हैरान की बात थी/है। जातिप्रथा हिंदूओं की एक ऐसी प्रथा है, जो उन्हें एकजुट होकर रहने नहीं देती, वे सिर्फ जातियों तक ही सोच पाते हैं।
![]() |
| Page 59 |
५) इसलिए हिंदू समाज बनाने के लिए आपको हर क्षेत्र चाहे त्योहार हो, या सोच अपने भेदभाव वाली जातिप्रथा को समाप्त करना होगा, तभी हिंदू एकता आएगी, सब मिलकर रह पाएंगे और सबकी सोच समान होगी और एक समुदाय के रूप मेें रहेंगे। ऐसा सोचते हुए बाबा साहेब ने लिखा कि हिंदू समाज एकता में रहे, समूह में रहे परंतु भेदभाव वाली प्रथा ना रहे।
![]() |
| Hindu code Bill cover page |
६) तभी बाबा साहेब ने #हिंदू_कोड_बिल बनाकर हिंदू जातियों को एकजुट किया सबको समान हक दिया, बुरे प्रथाओं को खत्म किया, लेकिन तत्काल वह बिल लागू नहीं हुआ, उन्होंने 1932 में #पूना_पैक्ट साइन करके पिछड़े जाति के हक को खोकर हिंदू बनाकर इस्तिफा देकर बौद्ध बनकर एक रास्ता #सम्यक_संस्कृति में प्रवेश करने हेतु बनाया है।
![]() |
| Puna pact VS Gandhi |
७) सन् 1950 में ही संविधान को लागू किया गया तभी पिछ़डी जातियों को हिंदू बनाकर भारत सरकार ने राजपत्र जारी किया। 1920 तक #दलित_कौम के जातियों की लिस्ट बाबा साहेब ने तैयार कर ली थी जिसे 1920 अनुसूचित जाति - अ. जनजाति तथा 1950 अन्य पिछड़ी जाति के तौर पर #भारतीय_संविधान में जोड़ा गया। जिसे बाबा साहेब को बहुत घात पहुंचा। वैसे भी साहेब ने दलित समाज को अलग पहचान दिलाने की बहुत कोशिश की लेकिन अंत में मिस्टर गांधी की जान बचाते हुए पूना पैक्ट साइन किया। जो दलितों के साथ किया गया एक धोखा था।
![]() |
| Hindu Code Bill |
८) समझे सन् 1872 में पहली बार ब्रिटिश भारत में जनगणना कराया गया था, फिर 1881 में संपूर्ण भारत में जनगणना कराया गया, तब भी हिन्दूओं की संख्या ज्यादा थी।
यही से बाबा साहेब ने सन् 1920 तक दलित पिछड़ा समाज (BC) की दावेदारी की और उन जातियों को सूचीबद्ध किया।
सन् 1948 की जनगणना के आधार पर एक बार फिर अधिकारिक तौर पर स्वतंत्र भारत की जनगणना 1951 में किया गया। जहां बाबा साहेब द्वारा बनाए गए ड्राफ्टों के आधार पर पिछड़े वर्गों (Backward Classes) के तीन वर्ग बने शुद्र (सछूत समाज), अतिशुद्र (अछूत समाज) और आदिवासी समाज।
- शुद्र - अन्य पिछड़ा वर्ग Other Backward Class - OBC
- अतिशुद्र - अनुसूचित जाति Sedule Cast
- आदिवासी - अनुसूचित जनजाति Sedule Tribes
वे उन्हें हिंदू से हटकर एक दलित समाज और अलग निर्वाचन क्षेत्र दिलाना चाहते थे। गांधी ने अंबेडकर से कहा कि अगर दलित समाज हिंदू से अलग होता है तो मैं आमरण अनसन करूंगा। यरवड़ा जेल में १४ दिन अनसन पर बैठ गांधी मरने तक आ गए, कस्तुरबा गांधी (गांधी की पत्नी) ने बाबा साहेब से उनकी जान बचाने हेतु गिड़गिड़ाने लगी, रोने लगी, पांव तक छुए। साहेब को तरस आया और दलितों को हिंदू समाज में रहने हेतु पूना पैक्ट पर साइन कर गांधी की जान बचाई। यह सन् 1932 की घटना है।
![]() |
| Puna Pact |
![]() |
| Hindu Code Bill 2 |
९) हिंदू कोड बिल समझे। हिंदू कोड बिल सन् 1950 के दशक में पारित कई कानून थे जिनका उद्देश्य भारत में हिंदू पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध और सुधारना था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की मदद से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सरकार ने इस संहिताकरण और सुधार को पूरा किया, ब्रिटिश राज द्वारा शुरू की गई एक प्रक्रिया थी। गैर-हस्तक्षेप की ब्रिटिश नीति के अनुसार, व्यक्तिगत कानून में सुधार हिंदू समुदाय की मांग से उत्पन्न होना चाहिए था। ऐसा नहीं था, क्योंकि विभिन्न रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं, संगठनों और भक्तों का महत्वपूर्ण विरोध था; उन्होंने खुद को अन्यायपूर्ण रूप से एकमात्र धार्मिक समुदाय के रूप में देखा, जिसके कानूनों में सुधार किया जाना था। हालांकि, नेहरू प्रशासन ने हिंदू समुदाय को एकजुट करने के लिए आवश्यक संहिताकरण को देखा, जो आदर्श रूप से राष्ट्र को एकजुट करने की दिशा में पहला कदम होगा। वे 1955-56 में चार हिंदू कोड बिल पारित करने में सफल रहे: हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, और हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम। वे आज भी महिलाओं, धार्मिक और राष्ट्रवादी समूहों के बीच विवादास्पद बने हुए हैं।
![]() |
| Hindu code Bill ki hatya |
१०) हिंदू माने जाने वाले लोगों के वर्गीकरण से भी संघर्ष उत्पन्न हुआ। संहिता ने "हिंदू" को एक नकारात्मक श्रेणी के रूप में स्थापित किया जिसमें वे सभी शामिल होंगे जिन्होंने मुस्लिम, यहूदी, ईसाई या पारसी के रूप में पहचान नहीं की। इस तरह के एक व्यापक पदनाम ने हिंदू धर्म में क्षेत्र, परंपरा और रिवाज की जबरदस्त विविधता को नजरअंदाज कर दिया। जो लोग सिख धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म का पालन करते थे, उन्हें कोड बिल के अधिकार क्षेत्र में हिंदू माना जाता था। जबकि वे मूल रूप से हिंदू धर्म के पहलुओं को शामिल कर चुके थे, तब तक वे अपने स्वयं के रीति-रिवाजों, परंपराओं और अनुष्ठानों के साथ अद्वितीय धर्मों में विकसित हो चुके थे। हिंदू पर्सनल लॉ के रूप में जो स्थापित किया गया था, उस पर भी महत्वपूर्ण विवाद था। हिंदू धर्म के तहत स्वीकृत विभिन्न प्रकार की प्रथाएं और दृष्टिकोण थे। इसलिए, प्रशासन को इन भिन्नताओं के बीच मध्यस्थता करनी पड़ी, कुछ को वैध बनाना और दूसरों की अवहेलना या हाशिए पर रखा गया।
![]() |
| Poona Pact |
११) सन् 1920 में दलित समाज की लिस्टिंग, 1932 में पूना पैक्ट साइन कर दलित समाज को मजबूरी में हिंदू माना, 1936 में लाहौर का भाषण जिसमें जातिप्रथा का विरोध, जातियों के कारण होने वाले भेदभाव के कारण बिखरे हिंदूओं की एकता की बात कही, 1950 - 1955 में हिंदू पर्सनल लाॅ, हिंदू कोड बिल, भारतीय राजपत्र आदि के माध्यम से सामान्य वर्ग और दलित पिछड़े वर्ग को अखंड हिंदू समुदाय समाज में एकीकरण कर किया गया। सन् 1951 में पहली जनगणना कराकर हिंदू बहुलक भारत बना। इससे आप समझ गए होंगे कि हिंदू जीवन शैली बनकर भारतीय जनता में लोकप्रिय बनी।
![]() |
| साभार : दैनिक भास्कर |
१२) अंततः पेज 57 से 59 में लिखा है - "वस्तुत: हिंदू समाज नामक कोई वस्तु है ही नहीं। यह अनेक जातियों का समवेत रूप है। किसी भी जाति को यह महसूस नहीं होता कि वह किसी अन्य जातियों से जुड़ी हुई है। प्रत्येक जाति यह कोशिश करती है कि वह अपनी अलग सत्ता को ठीक से बनाए रखे और दूसरों से स्पष्ट रूप से अलग रहे।" इस उद्धरण में बाबा साहेब ने सिर्फ हिन्दूओं के जातियों की स्थिति का वर्णन किया है। आगे कहते हैं - "हिंदुओं में उस चेतना (सोच) का सर्वथा अभाव है जिसे #समाजविज्ञानी - 'समग्र वर्ग की चेतना' कहते हैं। हरेक हिंदू में जो चेतना पाई जाती है वह उसकी अपनी ही जाति के बारे मेें होती है। जातिप्रथा इस प्रकार की सामूहिक गतिविधियों का आयोजन नहीं होने देती और सामूहिक गतिविधियों को इस प्रकार वर्जित करके ही उसने हिंदुओं को एक ऐसे समाज के रूप मेें उभरने से रोका है जिसमें सभी समुदाय एक होकर जिएं और उनमें एक ही चेतना व्याप्त हो जाए।" इस उद्धरण में वे कह रहे हैं कि जातिप्रथा हिंदू समाजिक एकता की सोच और सामूहिक कार्यक्रमों को रोकती है। यह सोच जातियों तक के ही कार्यक्रमों में सिमट जाती है। अतः वे हिंदूओं को एक समाज के रूप मेें बने रहने के लिए कह रहे हैं। सन् 1956 में बाबा साहेब का परिनिर्वाण हुआ। अब बताईए बाबा साहेब की दोनों बातें अलग-अलग समय की है और दोनों सही है। भारत में जातिप्रथा और जातिप्रथा-उंमूलन 1936 का भाषण था जो वह ब्रिटिश भारत के लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) में देना चाहते थे, पर वह कार्यक्रम रद्द हो गया था। स्वतंत्र भारत में सन् 1993 में पहला हिंदी संस्करण और 2019 में नवीन 12वां संस्करण प्रकाशित किया गया। भारतीय कांग्रेस सरकार ने 1950 में राजपत्र जारी किया, वरना दलित समाज अपना अलग ही पहचान बना पाता। सारी बातें सही साबित हुई है, इतिहास गवाह है। सरजी कब की बातों पर प्रश्नचिंह लगा रहे हो समझिए। जवाब दे दिया हूं सबूत के साथ, सुरक्षित रखें और पढ़ते रहें, जागरूक रहें, संगठित रहें।
![]() |
| Page 2 |
😎 #जयहिंद #जयभीम #जयचमार #नमोबुद्धाय #दलितविमर्श #TheGreatIndia #TheGreatIndian #AKPPin2 #शुद्र #DalitHistory #BahujanHistory #IndianHistory #JaiHind #SamyakDarshan #NamoBuddhay #JaiBhim 🙏















टिप्पणियाँ