मूलकथा : कौन था महिषासुर : कैसे हुई इसकी उत्पत्ति और वध : मूलनिवासी आदिवासी जननायक Mahishasur ✍️ AKPPIN2 🎭
मूलकथा : कौन था महिषासुर : कैसे हुई इसकी उत्पत्ति और वध : मूलनिवासी आदिवासी जननायक Mahishasur ✍️ AKPPIN2 🎭
दोस्तों आपने सनातन कथा के अनुसार महिषासुर की कथा तो पढ़ ली होगी। अब आगे की मूल कथा जो असल में रही है, वह आपके सामने पेश कर रहा हूं। यह कोई कोरी कल्पना नहीं है। एक पुरातात्विक खोज और सनातन आर्य धर्म की कथा अनुसार का ही निष्कर्ष है। तो चलिए शुरू करते हैं मूलकथा महिषासुर की।
आप सबको पता है कि आर्य कोई विदेशी लोग नहीं हैं। ना ही द्रविड़ विदेशी है। और ना ही दस्यु, राक्षस व शुद्र आदि विदेशी हैं। लेकिन फिर भी आर्यों को विदेशी समझा जाता है और ऐसा ही प्रचार भी किया जाता है।
आप सोच रहे होंगे कि यह क्या कह रहा है कि आर्य विदेशी नहीं है। आप ने ठीक सुना। आज तक हम लोगों को यही बताया जाता है कि आर्य विदेशी है और यूरेशिया से आए है। लेकिन मैं साबित कर दूंगा कि आर्य कोई विदेशी नहीं है बल्कि यहीं के धुर्त चतुर चालाक ठग लुटेरे हैं।
आप फिर सोच रहे होंगे कि लुटेरे तो विदेशी होते हैं परन्तु यह कह रहा है कि "आर्य यही के धुर्त और लुटेरे हैं!" तो जी बिल्कुल मैं यही साबित करने वाला हूं।
आप लोगों को इससे पहले शब्दों के अर्थ जानने होंगे और भारत के प्राचीन इतिहास में जाना होगा। भाषा विज्ञान के अनुसार शब्दों को समझना आसान हो जाता है। यही आपको समझना होगा।
सबसे पहले आंध्रप्रदेश जो आज दो भागों में बंट गया है पहला आंध्रप्रदेश और दूसरा तेलंगाना। यह भारत के राज्य हैं। सबसे पहले भारत को ब्रिटिश सरकार से आजादी मिली और राज्यों का पुनर्गठन भाषा के अनुसार किया गया। आप सबको पता है कि सबसे पहला राज्य आंध्रप्रदेश को बनाया गया जो भाषा के अनुसार ही थी। बाद में इसे फिर से क्षेत्रीय भाषाओं के आधार पर दो भागों में आजाद भारत सरकार द्वारा बांट दिया गया। यह स्थानीय लोगों के उग्र मांगों के कारण हुआ। यहां तक समझ गए होंगे कि भाषाएं कितनी जरूरी चीज बन गई है।
लेकिन क्या आपको पता है जब विश्व की विकसित सभ्यताओं से पहले आदिवासी जंगली शिकारी जीवन शैली ही मानवों के लिए पहली सीढ़ी थी। आगे बढ़ने के लिए और सभ्य बनने के लिए शैलचित्र विकसित किए गए और चित्रों से ही बात करने लगे। इससे पहले इशारों और संकेतों बातें किया करते थे। चित्रों से ही लिपि (लिखने की शैली) का विकास हुआ। लेकिन पहले बोली शुरू हुई होंगी। बोलते बोलते अपनी बात को पत्थरों पर लिखा गया होगा। यही पत्थरों का और मिट्टी का उपयोग बहुत बढ़ा होगा, इसलिए इस समयावधि को पाषाण काल कहा गया है। इससे आगे बढ़ते हैं और भारतीय भाषा के प्राचीन रूप को समझते हैं।
भारत की सबसे पुरानी सभ्यता सिंधु नदी घाटी की सभ्यता मानी जाती है। जिसमें सिर्फ चित्रलिपि, चित्र मुहरों और मिट्टी के सामान मिले हैं। इस सभ्यता की भाषा को आज तक पढ़ा नहीं जा सका है। लेकिन चित्रभावों को पढ़ने और सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर सिंधु घाटी सभ्यता की भाषा पढ़ ली जाती है तो मूलनिवासी समाज, समूह, दल या आदिवासी कबीलों की जानकारी जरुर मिलेगी।
फिर भी ऐसा माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता द्रविड़ सभ्यता रही होगी या आर्य सभ्यता रही होगी या किसी अनजान सभ्यता की दास्तान सुनाएगी। सिंधु सभ्यता को सुलझाने का प्रयास धीमा पड़ गया है क्योंकि अंग्रेजों ने भारत के दो टुकड़े कर दिए। पहला भारत और दूसरा पाकिस्तान। और इन दोनों जगहों पर सिंधु सभ्यता बंट गई है।
अब बात करते हैं। उस अखंड भारत की जब सिंधु घाटी सहित पूरे भारत में चक्रवर्ती सम्राट महान अशोक महाराजा का राज था। वह बौद्ध धर्म नियमों के प्रचार प्रसार के लिए अपने पुत्र पुत्री को भी बौद्ध भिक्षु बना दिया था। पत्थरों और बड़ी-बड़ी शिलाओं पर बौद्ध नियमों को लिखवा दिया जो आज भी पुरातत्व सर्वेक्षण से प्राप्त होती है। यही वह महाभारत था जो विश्वगुरु बना। पूरी दुनिया की नज़रों में भारत सोने की चिड़िया बन गई। यह आर्यों की पूर्ण विकसित सभ्यता थी। देखो पत्थरों पर इतिहास को लिखवाकर किस भाषा में सुरक्षित रखा गया।
महान सम्राट अशोक के शिलालेखों की भाषा थी एक प्राकृत भाषा। प्राकृत यानि प्राकृतिक तौर पर काम आने वाली जनभाषा। ऐसी भाषा जिसके शब्द भारत की बोलियों में आज भी देखने को मिलती है। इसे पालि भाषा कहते हैं। इसी भाषा को बौद्ध दर्शनों में साहित्य में जगह दी गई। यह भाषा महाभारत की राष्ट्र भाषा थी। यही प्राचीन हिंदी भाषा थी। और सिंधु घाटी सभ्यता में बौद्ध दर्शन के पुरातात्विक प्रमाण आज भी मिलते हैं।
सिंधु सभ्यता की भाषा द्रविड़ समूह की सैंधव व गोंड़ी या आर्य समूह की पालि और संस्कृत हो सकती है। पाली भाषा को संस्कारित करने के बाद संस्कृत भाषा बनाई गई। यह बौद्ध ब्राह्मणों के द्वारा बनाई गई भाषा थी। बाद में वैदिक काल में वैदिक आर्य भाषा बनाकर धुर्त चतुर लोगों ने इस पर कब्जा कर लिया और सदियों तक बौद्ध को नष्ट करने के बाद मूलनिवासी बौद्धों को शिक्षा से वंचित कर दिया गया।
आप चौंक गए होंगे कि आर्य समाज के बौद्धों को आर्य समाज के ही वैदिकों ने ऐसी सजा दी। और बौद्ध संपदाओं पर एकाधिकार कर लिया गया। यह सिर्फ सत्ता और लालच में किया गया था। इसका बड़ा कारण था। मूलनिवासी सिंधु घाटी के सैंधव गोड़वाना भूमि के गोड़ समूहों और आदिवासी बहुजन समाज के लोगों का बौद्धिक विकास और बौद्ध धम्म की शिक्षा दिक्षा और जीवनशैली को बढ़ावा मिलना।
पालि शब्दों का संस्कृत और संस्कृत से हिंदी भाषा का विकास होना, एक बहुत बड़ी क्रांति ही तो है। भाषा के क्षेत्र में बड़ी क्रांति। यह आर्य समूह की बड़ी जीत है। बात करते हैं गोंडवाना समूह की गोंड़ी भाषा की। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि अगर गोंड समाज की गोड़ी भाषा में सिंधु घाटी की सैंधव भाषा को पढ़ा जाए तो भारत की इस गोंडवाना समूह का इतिहास पूरे द्रविड़ समूह के लिए गर्व करने वाली होगी।
मेरा मानना है कि आर्य समूह भारत में बाहर से नहीं आया है। इसके विपरित आर्य विदेशी होने का दावा स्वयं आर्य वैदिक समूहों ने संस्कृत में लिखकर की है। लेकिन वहीं बौद्ध आर्य समूह ऐसा दावा नहीं करती। यह साबित भी होता है कि बौद्ध पालि भाषा अतिप्राचीन प्राकृत भाषा है। इससे पहले और समकालीन जैन समूह की भाषा शुद्ध प्राकृत भाषा है। यह प्रमाणित है। यही भारत की मूलनिवासी श्रमिक समण वर्ग की भाषा थी। ऐसा प्रमाणित होता है कि प्राकृत पाली भाषा में वर्ण व्यवस्था की शुरुआत हो गई थी। और यही आगे वैदिक बमण संस्कृत भाषा में वर्ण व्यवस्था को अपना लिया गया। आप ऐसा कह सकते हैं कि यह वर्णव्यवस्था आर्य समूह की सभी शाखाओं के लिए जरूरी बन गई थी। जाति व्यवस्था की शुरुआत वैदिक काल के अंतिम दौर में ज्यादा देखने को मिलती है और एक नए वर्ग शुद्र की उत्पत्ति हुई है। इसे सवर्ण समाज कह सकते हैं।
अब प्राचीन मूलनिवासी आदिवासी कबीलों में भी कई समूहों को देख सकते हैं। और उनमें भी भयानक युद्ध देखा जा सकता है। भारत के अति प्राचीन लोगों में कई समाज बन गए होंगे। आदिवासी समूहों में राक्षस, असुर, दानव, दैत्य, दस्यु, गोंड, मुंडा, मानव, और देवता जैसे कबीले बन गए होंगे। इसी समूहों में आपसी झगड़े होते रहे होंगे। सिंधु सभ्यता की भाषा को डिकोड करने के (पढ़ लेने के ) बाद ही सारा झमेला समझ आ जाएगा। लेकिन कोई बड़ा शिलालेख नहीं मिलने के कारण पढ़ पाना मुश्किल सा हो गया है। अब तो इस भूमि पर दो सरकारें (भारत-पाक) राज कर रही हैं। ब्रिटिश सरकार अखंड भारत पर कब्ज़ा भी किया और टुकड़े भी कर दिए। लेकिन ब्रिटिश सरकार में ही सिंधु घाटी सभ्यता की खोज हुई, नई शिक्षा नीति के तहत सभी को एकबार फिर शिक्षा के प्रति जागरूक किया गया। और कई नए औद्योगिक विकास भी किया गया। जरूर आपस में लड़ रहे सोने की चिड़िया को कई विदेशी समूहों जैसे अंग्रेज, मुस्लिम, तुर्की, अरबी, फारसी (ईरानी) अफ़गानी, ईराकी, यवन, हूण और शक आदि ने लुटा हो लेकिन आर्य समूह में मिलकर भारत के मूल दर्शन को अपनाया भी है।
भारत में आर्य समूह के वैदिक शाखा के धुर्त बमणों ने संस्कृत भाषा पर एकाधिकार कर लेने के बाद जो सामाजिक संरचना की कई गई, उस पर ऊंचे स्थान पर बने रहने के लिए समणों यानि श्रमिक वर्गों को जातिवाद में फंसाकर उनका मानसिक और शारीरिक शोषण अंग्रेजों मुगलों से भी ज्यादा किया गया। उन्होंने द्रविड़ समूह को पराजित करने के बाद आर्य समूह के ही समणों को भी पद्दलित कर दिया। आप ऐसा समझ सकते हैं कि आर्य वैदिक धर्म की स्थापना के बाद बौद्ध धम्म और जैन धर्म को कमजोर कर दिया गया। वैदिक समूहों में ब्राह्मण, वैष्णव, शैव और शाक्त पंथों में भी आपसी वैचारिक मतभेद रहे हैं और कहीं-कहीं युद्ध भी हुए हैं। इन आर्य समूहों का द्रविड़ समूह के राजाओं महाराजाओं से भी युद्ध होता ही रहता था। ऐसे ही युद्धों को देवासुर संग्राम कहा जाने लगा।
आप विश्वास नहीं करेंगे कि द्रविड़ समूह की भाषाओं में आर्य समूह की भाषा के शब्दों का बड़ी संख्या में मिलना यह साबित करता है कि सभी एक ही भूमि गोंडवाना जम्बूद्वीप सिंधु घाटी की भाषा रही है। मैंने पहले ही बता दिया कि कई मानव कबिले प्राचीन भारतीय भूमि में रहें होंगे जो आदिकाल से पत्थरकाल फिर ताम्रकाल और फिर लौहकाल तक का सफर तय किए होंगे। यह ऐतिहासिक घटना कोई कोरी कल्पना नहीं हो सकती, क्योंकि ऐसे कालखंडों को इतिहास में बहुत ही अच्छे तरीके से पढ़ाया जाता है। प्राचीन मानवों के चिन्हों, स्थानों, औजारों और शैवचित्रों का भारत में मिलना एक प्रमाण ही तो है। भारतीय इतिहास में आर्य व द्रविड़ समूह के साझा जानकारी मिलती ही है।
अब आते हैं द्रविड़ समूह के भाषाओं में, जिसमें गोंडी, तमिल, तेलगु आदि यानि दक्षिण भारत की सभी भाषाएं द्रविड़ समूह की है। और वहीं उत्तर भारत की सभी भाषाएं आर्य समूह की है यानी प्राकृत, पालि, संस्कृत और हिंदी। क्षेत्रीय भाषाएं बोली कही जाती है और राजकीय भाषाएं राष्ट्रीय भाषा कहलाती है। ऐसा समझे कि जब कई प्रदेश होते थे तब बोलियां ही राष्ट्र भाषा होती थीं। फिर भी एक साहित्यिक भाषा होती थीं जो उस प्रदेश की संस्कृति को सुरक्षित लिखकर रखती थी। एक दौर था जब पत्थरों पर लिखकर इतिहास को सुरक्षित रखा जाता था। ऐसा भी था कि तालपत्रों, भोजपत्रों और मौखिक विधि से भी कई बातें सुरक्षित रखा जाता था। ऐसे युगों का दौर भी निकल गया और आज ऐसे समय में पहुंच चुके हैं कि कागज और डिजिटल माध्यम से चीजें सुरक्षित रखा जा रहा है। यह क्रिया लगातार जारी है। मानव ऐसे युग में पहुंच चुका है की खुद के लिए खतरा भी बना रहा है। समय में मानव एक दूसरे के लिए खतरा ही हुआ करते थे और आज फिर इतिहास दोहराने को उतारू हो रहा है।
भाषा विज्ञान के अनुसार देखें तो उत्तर भारत में सिंधु घाटी के लोगों व भूमि को अरबी-फारसी में हिंदू- हिंदुस्तान, यवनों के ग्रीक-लैटिन में इंडियन- इंडिया और आर्य-द्रविड़ में भारतीय- भारत कहा जाता रहा है। हम आज ज्ञात विदेशी समूहों के युद्धों को छोड़ देते हैं और भारतीय समूहों के आर्य- द्रविड़ युद्ध की बात करते हैं।
वैदिक ग्रंथों में वर्णित है कि आर्य लोगों के देवताओं ने दस्यु, दानव, राक्षस और असुरों को हराकर और आर्यवर्त की सीमा को बढ़ाकर भारतवर्ष कर दिया गया। देवता- असुर युद्धों को देवासुर संग्राम कहा जाने लगा। मेरा ऐसा मानना है कि सिंधु घाटी जो विकसित नगरीय सभ्यता थी, उसमें सभी भारतीय समूहों के पूर्व सैंधव वंशज रहते थे। इस घाटी के लोगों का पलायन पंजाब की सात नदियों की घाटी के तरफ हुआ। वे सभी बाढ़ आने की घटनाओं और नुकसानों से परिचित थे। उपजाऊ भूमि से बंजर भूमि में रहना मुश्किल होता ही है और खाने की भाग-दौड़ में आगे निकल जाना पूर्व भारतीय मानवों की चुनौती रही होगी। ऐसा भी माना जाता है कि ईरान के समतली इलाके से चरवाहों का एक आर्य शाखा भारत की ओर आया। इस सिद्धांत को अंग्रेजों ने दिया था। बाद में धुर्त तथाकथित आर्य द्वीजों ने अपने आपको बढ़ा दिखाने और भारत के श्रमिक वर्गों पर शासन करने के लिए इस सिद्धांत को बढ़ावा दिया। और विप्र समाज के संस्कृत भाषी समूह ने भारत के श्रमिक वर्गों का मुगलों और अंग्रेजों के साथ मिलकर और उसे पहले भी शोषण करना शुरू कर दिया था। लेकिन इस सिद्धांत को देने से पहले भी भारत में आर्य और द्रविड़ लोग रहा करते थे।
जैसा कि मैंने कहा सभी सैंधव कबीले पंजाब के इलाकों में पहुंच चुके थे और पांच नदियों से घिरे हुए मैदान में बस चुके थे। सिंधु घाटी से पंजाब तक की सीमा आर्यवर्त बन चुकी थी। आर्य ग्रंथों के वैदिक शास्त्रों के अनुसार आर्य देवता और अनार्य दस्यु राक्षसों के बीच घमासान युद्ध होने का प्रमाण है। यह दस्यु अनार्य ही द्रविड़ गोंड समूह के आदिवासी मूलवासी ही थे। जो श्रम करके जीवन यापन चलाते थे। अगर ऐसा माना जाए कि पत्थर युग के बाद खेती-बाड़ी और पशुपालन, भोजन संग्रह और शिकार की विधियों में बदलाव आया हो। मैं तो कहूंगा कि स्थायी बसावट के बीच लोगों में बुद्धि का विकास तेजी से हुआ और बुद्ध दर्शन, जैन दर्शन, वैदिक दर्शन और धर्मों (मार्गों, पंथों, रास्तों) का उदय हुआ। पाली भाषा के अनुसार बुद्ध 28, जैन 24 और वैदिक वैष्णव (विष्णु) 10 हो चुके हैं। यानी भारत ज्ञान आध्यात्म और ईश्वर के रहस्यों के क्षेत्र में विश्व गुरु बन चुका था।
पाली भाषानुसार, बौद्धों के अर् (चक्र की तिली) से आर्य शब्द बना है। पहले सभी आर्य समूह क़बीलाई रहे होंगे। द्रविड़ कबीले भी रहे होंगे। पालि को संस्कारित करके संस्कृत भाषा बनाई गई। ऐसा सबूत मिलते हैं कि बौद्ध के अन्तिम राजा बृहदत्त की हत्या के बाद बौद्ध धर्म का पतन किया गया और वैदिक धर्म को पुष्यमित्र शुंग के द्वारा बढ़ाया गया। इससे पहले सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म और पाली भाषा को बढ़ाया था। आज सभी द्रविड़-आर्य भाषाओं में प्राकृत भाषा पालि के शब्द मिलते हैं। वैदिक को ने पालि को संस्कारित करके संस्कृत बनाई और संस्कृत को सब भाषाओं की जननी कहा गया। लेकिन यह सच ही है। पाली -> संस्कृत -> हिंदी, गोंड़, तमिल, बंगाली ऐसे ही तमाम भाषाएं बनी है। इसमें साबित होता है कि महान अशोक के ज़माने तक संस्कृत नहीं बनी थी इसलिए संस्कृत के शिलालेख नहीं मिलते। खरोष्ठी, पालि, ग्रीक भाषा मिलती है, संस्कृत नहीं मिलता।
गुप्त काल के बौद्धों ने संस्कृत बनाया और गुप्त काल को स्वर्णयुग बना दिया। शुंग वंश के बाद बौद्धों का पतन किया गया और रसालत में ढकेल दिया गया। बौद्ध धर्म ही शुद्र अछूतों को सम्मान दे रही थी। जैसे आज ईसाई धर्म आदिवासी समाज के लोगों को सम्मान देती है। भारत के सात बहिनिया राज्य ईसाई बहुसंख्यक बन चुका है। ऐसे ही पूरा भारत बौद्धमय था। गौतम बुद्ध 28वें बुद्ध बने और जातिवाद का खंडन किया। इसलिए वैदिक धर्म के गुरुओं ने बौद्ध भिक्षुओं और नियमों का खंडन किया।
आर्य- द्रविड़ युद्ध में द्रविड़ राजाओं को हार का सामना करना पड़ा और आर्य योद्धा देवता बन गए। द्रविड़ों को दास गुलाम बनाया गया। वैष्णव पंथ के ग्रंथों से साबित होता है कि विष्णु देव ने वामनावतार में द्रविड़ सम्राट दानवीर बलि महाराजा से छल किया और महाराजा बलि की हत्या कर दिया गया। और भारतीयों में ऐसा प्रचारित किया गया कि राजा बलि पाताल लोक के राजा बना दिया गया। यह आर्यों का बड़ी जीत थी और धुर्त्ता की निशानी थी। ऐसे ही आंध्रप्रदेश के जननायक राजा महिषासुर के साथ किया गया। नौ दिन तक दुर्गा नामक आर्य कन्या को जो अत्यंत मनमोहक थी, त्रिदेवों से भेंट करके महिषासुर का वध कर दिया गया। तेलंगाना राज्य में पुरातत्व सर्वेक्षण में महिष राज़ के सबूत और सिक्के मिले हैं। जिसे तेलंगाना राज्य के वेबसाइट पर देखा जा सकता है। यानि आर्य समूह का भारतवर्ष की सीमा दक्षिण द्रविड़ राज्य महिषपुर तक फ़ैल चुका था और अंतिम राजा रावण जो लंकाधिपति थे। राम के द्वारा वध करवा दिया गया। फिर भी देखते हैं आज भाषा अनुसार राज्य बनाकर आर्यों ने द्रविड़ों पर शासन करना शुरू कर दिया गया और अंग्रेजों के आने के बाद भारत आधुनिक बन गया। अब सभी आर्य द्रविड़ समूह भारत में गर्व के साथ रहते हैं। यहां के आर्य आज भी नवरात्रि में महिषासुर रावण वध को याद करते हैं और आदिवासी समाज अज्ञानता के कारण अपने पुर्वजों को जलाते रहता है। जबकि द्रविड़ हमेशा से दफनाने की विधि को अपनाते आ रहे हैं। लेकिन आर्यों के द्वारा ऐसा करने का विरोध द्रविड़ नहीं करता और अपनी हार कबूल कर लेता है। और वे हर वर्ष ऐसे त्योहारों, पर्वों को निभाते हैं।
पाली संस्कृत में महिष शब्द का अर्थ होता है- भैंसा। यानि महिष असुर मूलनिवासी नायक का टोटम (कुल चिन्ह) भैंसा था। सिंधु घाटी सभ्यता के कई सील मुहरें ऐसे ही कई जीवों से अंकित मिले हैं और कुछ सांकेतिक शब्द के समूह भी लिखे गए हैं। आप ऐसा समझ सकते हैं कि यह मुहरें और सील कई प्राचीनवासी (आदिवासी) आदिहिंदुओं के समूहों कबीलों का कुल चिन्ह रहे हों। क्या पता सैंधव भाषा को कब पढ़ लिया जाएगा और फिर एक ऐतिहासिक क्रांति होगी।
ऐसे ही महिषपुर का तेलंगाना में मिलना यह साबित करता है कि वैदिक ग्रंथों में मजाक उड़ाकर लिखा गया हत्याएं कथाएं सत्य है। इसे समझने के लिए आपको महिषासुर के वस्त्रों पर गौर करना होगा कि एक मूर्तिकार महिषासुर को कैसे आदिवासी वनवासी की तरह दिखाता है। मूर्तिकार आर्यों के बताए हुए मार्ग-दर्शन से प्रभावित है। ऐसे ही कितने ही असुर राजाओं का वध कथाएं वैदिक शास्त्रों में भरे पड़े हैं। आंध्र प्रदेश से भाषाई आधार पर तेलंगाना अलग राज्य बना और तेलंगाना सरकार अब क्षेत्र में विकास कार्यों के साथ साथ पुरातत्व सर्वेक्षण भी करा रही है, जिससे उस क्षेत्र के मूलनिवासियों के इतिहास अतीत के लोगों का पता चल सके। ऐसे ही निरपेक्ष होकर हर राज्य सरकार और भारत सरकार को पुरातात्त्विक सर्वेक्षण कराना चाहिए, जिससे इतिहास में और स्वर्णपत्र जोड़े जा सके।
सिंधु घाटी की राखीगढ़ी क्षेत्र की खुदाई में पर्याप्त कंकालों में आर१ए१ (R1A1) डीएनए जीन्स नहीं पाया गया है। कहते हैं यह जीन कोड आर्य समूहों में अधिक होता है। बाद में इस रिपोर्ट को बदलने का भी प्रयास किया गया। इससे साबित हो रहा था कि आर्य पलायन सिद्धांत सही है और आर्य विदेशी हैं। लेकिन ऐसा नहीं समझना चाहिए, क्योंकि आर्य समूह की पालि भाषा जो पूर्ण रूप से पूरे भारतवर्ष में फ़ैल चुका था, उनके प्रभाव और शब्द आज भी द्रविड़ समूहों की भाषाओं में मिल जाता है। ऐसा कह सकते हैं कि आर्य देवता और द्रविड़ राक्षस दोनों एक ही बाप के बेटे हैं और इनकी माताएं सौत रही होंगी। ऐसा आर्यों के सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने कही है और राक्षस (रक्षक) भी त्रिदेवों की पूजा करते थे। ऐसा आर्य ग्रंथों में वर्णित है।
अब पालि भाषानुसार संस्कृत और द्रविड़ भाषाओं को समझा जा सकता है। जो अशोक महान की वजह से अखंड भारत में फ़ैल गया था। द्रविड़ भाषाएं भी इसी पालि के शब्दों से मिलकर बनी हुई है। पालि प्राचीन हिंदी ही है। सैंधव लोगों की भाषा का अभी तक ज्ञान नहीं हो पाया है। लेकिन द्रविड़ भाषा गोंडी से मिलती जुलती रही होंगी ऐसा दावा किया जाता है। वहीं आर्य समूह भी दावा करती है कि यह संस्कृत हो सकती है। जो भी हो बौद्ध पालि, जैन प्राकृत, वैदिक संस्कृत और द्रविड़ गोंडी भाषा एक साथ सैंधव भूमि में जन्मी है। और इन समूहों कबीलों की खुद की बोली थी। और यह समूह जर जोरू जमीन और सत्ता के लिए आपस में लड़ती रही है।
अब पालि संस्कृति शब्द का अर्थ समझते हैं, जो निम्नलिखित है। इससे ऐतिहासिक बातें समझने में बहुत ही ज्यादा आसान हो जाएगा। भाषा के आधार पर भी इतिहास को लिखने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे सभी वर्गों का इतिहास, अच्छा या बुरा, सब सामने आ सके:-
आर्य = श्रेष्ठ, ऊंच, महान
देवता = देने वाला, दानी, दानवीर, दानव
राक्षस = रक्षक, रक्षा करने वाला
मानव = मान रखने वाला, सम्मानित व्यक्ति
देवी = देने वाली, दानवी
बुद्ध = जागृत बुद्धि वाला, विवेकी
जैन = जानने वाले उच्च देव
बामण = ब्राह्मण, पूजारी, कर्मकांडी
समण = श्रमण, श्रमिक, पराश्रमिक
आदि = प्राचीन, पुराना, सनातन, पूर्व, अतीत के
आदिवासी = मूलनिवासी, अतीत के वासी, प्राचीन निवासी
अति प्राचीन = बहुत ही पुराना
सिंधु = हिंदू, एक नदी का नाम,
हिंदू = सभी समूह जो भारत में रहती है, वैदिक आर्यों का एकाधिकारी धर्म
सिंधु घाटी = सिंधु नदी के मैदानी इलाके
सैंधव = सिंधु वासी, अतिप्राचीन भारत के मूलनिवासी
द्रविड़ = द्रवित लोग, या दास, दस्यु, आदिवासी
असुर = बिना सुर के, बिना बुद्धि के, बुद्धिहीन
अछूत = जिसे छुआ ना जा सके
दलित = मानसिक परेशान लोग
शोषित = जिसका शोषण होता हो
शोषक = जो शोषण करता है
पिछड़ा = जो पिछड़ चुके हैं
जंगली = जो वनों में रहता है, आदिवासी मूलवासी वनवासी
आयन = के दृष्टिकोण से, चरित, आचरन
रामायण = राम के दृष्टिकोण से, राम चरित
चरित = चरित्र, आचरण
अनंत = जिसका अंत ना हो
नाग = गोंडवाना भूमि के नाक लोग, नागवंशी, सर्प, सांप
महिष = महिषवासी, भैंसा, भैंस के समान ताकत रखने वाले
वानर = वनवासी, वननर, आदिवासी
शुद्र = आर्य वर्ग में एक वर्ग, सेवक, दास, मुंढ, मूर्ख, नीच
वैश्य = व्यापार करने वाले एक वर्ग, व्यापारी
क्षत्रिय = क्षेत्र का मालिक, रक्षक, लड़ने वाला
ब्राह्मण = पूजारी, पुरोहित, पंडित, ब्रह्मज्ञानी
द्वीज = दो जन्म को मानने वाले, द्वीजन्मा, पुनर्जन्मवादी
वाद = मत, सिद्धांत, विचारधारा, वैचारिक मत
बहुजन = बहुसंख्यक, बहुत बड़ा जन
सर्वजन = सभी जन, सभीझन, सब लोग
लोक = लोग के निवास, जन, लोग
लोकसभा = जनसभा
धम्म = धर्म, धारण करने योग्य
भिक्खु = भिक्षु, भंते
भंगी = भंग करने वाला
कबिला = समूह, गूट, परिवारों का समूह
परिवार = मानव गूटों की सबसे छोटी इकाई
कुल = परिवारों के गोत्रीय समूह, परिवारों का समूह, वंश
जाति = कुलों का समूह, कई गोत्रों का समूह
वर्ग = कई जातियों का समूह
समाज = वर्गों का समूह
खेत = क्षेत्र, भूमि
खेतीय = क्षेत्रीय, क्षत्रिय
क्षत्रिय = क्षेत्रों का मालिक, खेतों का मालिक, भूमि के रक्षक
गांव = कई समाजों का समूह
नगर = गांवों का विकसित रूप, शहर
तहसील = गांवों का समूह, थाना, ताल्लुका
जिला = नगर तहसीलों का समूह, जिल्ला
राज्य = जिलों का समूह, प्रदेश, परदेश
राष्ट्र = देश, राज्यों का समूह होता है, ऐसे ही भारत एक देश है, राष्ट्र है।
अब बात करते हैं लुटेरेपन की, लुटेरे समूह किसी भी क्षेत्र या भूमि में रहने वाले समूहों के अनाज गृहों (घरों), कोठारों पर इकट्ठे अन्न, शिकार से प्राप्त मांस, धातुओं और हथियारों को लुटा लेते थे। इसे डाकू डकैत गिरोह गुंडे आदि कई नामों से जाना जाता है। यह लुटेरों का समूह सभी कबीलों में रहते थे। आर्य और द्रविड़ समूहों में तो भोजन, धन, औरत व सत्ता के लिए लड़ाई होती रहती थी। वैदिक कथाओं में देवताओं द्वारा राक्षसों की हत्या (वध, बलि) करने और उनकी भूमि छीनने का भी वर्णन किया गया है। वहीं असुरों द्वारा देवताओं के स्वर्ग को जीत लेने तक का वर्णन किया गया है। देवताओं को अय्याशी और भोगी बताया गया है। वे धरती के श्रमिक वर्ग के असुरों चिढ़ाते और उनके खेतों (क्षेत्रों) को लुटकर उनकी हत्या कर देते थे। वहीं कई दानी राजा (दानव) जैसे बलि और कई रक्षक राजा (राक्षस) जैसे रावण की सत्ता को देवताओं ने मिलकर लुटा है। असुर राजाओं जैसे महिषासुर आदि के राज को हथिया लिया गया वह भी देवता अपनी नवस्त्रियों को देकर और धोखे से मारकर। ऐसी आर्य विष्णु के 24 रूप (अवतार) बताएं गए हैं, परंतु 10 मुख्य रूप ही ज्यादा महत्वपूर्ण थे आर्यों के लिए। अनार्यों के 10 प्रमुख राक्षस राजाओं को खत्म करने के लिए विष्णु ने बहुत छल किया है। इसलिए विष्णु को छलिया भी कहते हैं। असुरों से छल कपट करके उनकी भूमि खेतों क्षेत्रों को लुटकर बांट लिया करते थे और अपने दुश्मनों का नरबलि देकर यज्ञ स्वाहा करते और मौज उड़ाते थे। उनकी औरतों को अपनी रंगभवन में रखते थे और दासी बना दिया जाता था। ऐसे कई पौराणिक कथाएं हैं जिससे यह बातें साबित होती है। ऐसी बाते अपनी अगली पीढ़ी को सिखाने बताने के लिए लिख लिया करते थे। सेवक दास गुलाम श्रमिक वर्ग को शिक्षा ज्ञान से वंचित कर दिया गया था। आर्य समूह के बौद्धों ने बड़ी क्रांति की और आमजन तक शिक्षा ज्ञान वैज्ञानिक बातों का तर्क सहित प्रचार प्रसार किया गया। जिससे इस बौद्ध जैन वर्ग को नास्तिक कह दिया गया। नास्तिक यानि तर्कवादी मानववादी जन, ये बहुजन हो गए और वैदिक आर्य समूहों के निशाने पर आ गए। बौद्ध का नरसंहार और पतन के बाद। छोटे छोटे राज्यों की लड़ाई छिड़ गई। कई राजपुत्र आपस में भिड़ गए। और आए दिन युद्ध के चलते जनता त्राहिमाम करने लगी।
अब इन छोटे छोटे राजपुताना राज्यों के ऊपर, बाहरी आक्रमणों का दौर शुरू हुआ। मुग़ल, अरबी, पारसी, अफगानी, तुर्की हमले शुरू हो गए। तथाकथित क्षत्रिय लोगों को हराकर उनके क्षेत्रों को लुटकर धन संपत्ति और औरतों को अपने राज्य ले जाते थे। कुछ मुगल बादशाहों ने भारत में ही बसेरा डाल दिया और राज करने लगे। ऐसा कह सकते हैं कि लुटेरों को लुटेरों ने लुट लिया। आर्य समूह के लुटेरों ने द्रविड़ समूहों को लुटा और बाहरी आक्रांताओं ने आर्यों को लुटा। अब यूरोप के कई राज्यों के सैनिक भी भारत भूमि में व्यापारी बनकर आए और लुटकर धन संपत्ति ले जाते रहे। इसमें सबसे ताकतवर यूरोपीयन ब्रिटिश अंग्रेज थे। जिन्होंने 200 सालों तक भारत का शोषण किया और आर्यों और मुगलों के नस-बल को तोड़ दिया। भारत के पिछड़े शोषित वर्गों के लोगों और हारे हुए राज्यों के सेनाओं से अपनी ताकत बढ़ाई। आधुनिक भारत की शुरुआत की। पेंशन, उद्योग और शिक्षा ज्ञान को बढ़ाने में मदद किया। संसाधनों का उपभोग किया। कुछ लुटकर ले गए कुछ भारतीयों को ही दे दिया। आजादी के बाद फिर भारत स्वतंत्र हुआ और आज एक बौद्ध विचारों से सुसज्जित धर्म- निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य भारत बनकर संविधान के अनुसार राज करने के लिए खड़ा है। लेकिन भारत भूमि में जैवविविधता और अनेकता में एकता होते हुए भी सम्विधान को पुर्ण रूप से लागू नहीं किया जाता। क्योंकि आज भी आर्य और द्रविड़ समूहों के बीच सत्ता की राजनीति चल रही है। और इसी कारण भारतीय जनता भ्रष्टाचार और अज्ञानता में फंसकर जीने को मजबूर है। फिर भी भारतवंशी विश्व में भारत देश का नाम रौशन कर रहे हैं।
अब आप समझ गए होंगे कि आर्य और द्रविड़ समूहों की लड़ाईयां ही देव-असुर संग्राम है। आर्यों का दक्षिण की तरह विस्तार होना और द्रविड़ समूहों को घने जंगलों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि वे अल्प संसाधनों हथियारों का प्रयोग करते रहे होंगे और पराजीत (हार जाना) होकर जंगलों में छुप गए होंगे। जैसा विश्व के कई इलाकों में ऐसी घटनाओं का वर्णन मिलता है, जो वैज्ञानिक तरीके से सोचने पर सही लगती है।
यह भी समझ गए होंगे कि भाषा के आधार पर भूमि का विभाजन उस क्षेत्र के लिए विकास का रास्ता खोल देती है। बड़ी भूमि राज्य में पिछड़े क्षेत्रों का विकास रुक जाता है। अगर उस राज्य को छोटा कर दिया जाए तो उसका विकसित हो तय हो जाता है। विकसित देश बनाने के लिए भारत सरकार को और राज्यों का गठन भाषाई आधार पर करना चाहिए, जिससे पिछले क्षेत्रों का विकास हो सके।
अब तेलंगाना राज्य से महिषी इतिहास सामने आ रहा है। जो द्रविड़ समूहों के लिए गर्व की बात है। और द्रविड़ इतिहास के लिए जरूरी भी है। अब भारतवंश में आर्य- द्रविड़ ही नहीं, हिंदू यहूदी ईसाई मुस्लिम पारसी तुर्की गुर्जर चमार अंग्रेज शक हुण सभी के वंशज रहते हैं और भारत देश के वासी हैं।
!! अनेकता में एकता जिंदाबाद !!
|| जयहिन्द जयभीम जयबहुजन जयभारत जयसंविधान ||
✍️ #akppin2 🙏
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