कांग्रेस को चिंता छोड़कर उठाने होंगे संगठन के हित में कड़े कदम AKP Pin2
कांग्रेस को चिंता छोड़कर उठाने होंगे संगठन के हित में कड़े कदम
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| कांग्रेस चुनाव चिन्ह |
पार्टी को इस बात पर भी चिंतन करना चाहिए कि राष्ट्रीय विषयों पर संगठन का रुख क्या रहे, यह स्पष्ट होना चाहिए। हर मसले पर अवरोधक की भूमिका निभाना भी सही नहीं है।
केंद्र की सत्ता से बाहर होने के बाद से कांग्रेस के संगठन में लगातार उथल-पुथल बनी हुई है। गुजरात विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस को गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और पंजाब के कार्यकारी अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ ने अलविदा कह दिया है। बीते कुछ सालों में कांग्रेस से पलायन करने वाले नेताओं की संख्या बढ़ी है, यह कांग्रेस के लिए चिंता की बात है, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संगठन को सहेजने की दृष्टि से पार्टी ने हाल ही में उदयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन किया था और उसी के तत्काल बाद इन दोनों नेताओं ने पार्टी छोड़ दी।
हालांकि हार्दिक पटेल के कांग्रेस से नाराज़ होने की बात लगातार आ रही थी और अब अटकल लगाई जा रही है कि वे भाजपा में शामिल होंगे। उधर सुनील जाखड़ ने भाजपा का दामन थाम लिया है। इस घटनाक्रम पर कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रिया आयी है कि राहुल गांधी के गुजरात दौरे और रैली के बाद भाजपा ने कांग्रेस को कमजोर करने के लिए इन नेताओं से दलबदल करवाया है। पार्टी छोड़ने वाले नेता अक्सर खामियां गिनाते हैं और इन दोनों नेताओं ने भी यही किया है। इससे पहले पार्टी ने चिंतन शिविर में संगठन को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने का संकल्प लिया है।
राहुल गांधी ने भी खुद माना है कि संगठन के किसी पद में पांच छह साल से अधिक समय तक किसी पदाधिकारी को नहीं जमे रहना चाहिए, शिविर से ही संकेत मिला है कि पार्टी इस दिशा में जल्द ही स्क्रीनिंग कमेटी बनाएगी और सालों से जमे नेताओं को हटा कर नए लोगों को मौका दिया जाएगा। कांग्रेस का यह कदम पार्टी के भीतर संजीवनी फूंकने का काम कर सकता है। अभी पार्टी में संगठन चुनाव की प्रक्रिया चल रही है, जिसमें इस बार हाईटेक प्रकिया को अपनाया गया है। डिजिटल सदस्यता की प्रक्रिया को पूरी करने के बाद अब पदाधिकारियों के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है।
इस चुनाव में कुछ नए बिंदुओं को जोड़ा गया है। यह पहली बार हुआ है कि संगठन की सदस्यता दिलाने के लिए डिजिटल माध्यम का सहारा लिया गया, इससे सदस्यता में फर्जीवाड़ा की संभावना पूरी तरह खत्म हो गई। इसकी वजह यह है कि सदस्य बनाने के लिए एक एक पदाधिकारी को सदस्य से संपर्क करना पड़ा और फिर मोबाइल नंबर के जरिए उसके सत्यापन का काम किया गया है। माना जा रहा है कि संगठन का नया ढांचा निश्चित रूप से भविष्य में पार्टी को सहारा देगा। कांग्रेस को कुछ इसी तरह के कदम उठाने होंगे, जिससे संगठन के भीतर का माहौल बदलेगा और पार्टी से पलायन को रोका जा सकेगा। राजनीति में यही विडंबना है कि जिस दल की सरकार लंबे समय तक नहीं बनती, वहां पर बिखराव शुरू हो जाता है और यह फॉर्मूला सभी राजनीतिक दलों पर लागू होता है।
अभी कांग्रेस उसी दौर से गुजर रही है। कांग्रेस ने उदयपुर के चिंतन शिविर में सभी विषयों पर बात की और सभी से राय ली। साथ ही अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कांग्रेसियों को संदेश देने का प्रयास किया है कि वर्तमान स्थिति में वे पार्टी का कर्ज उतारने का प्रयास करें। उनके कहने का आशय यह है कि अब तक जिस कांग्रेस के सहारे बहुत कुछ पाया है, उस पार्टी के हित में काम करने का वक्त आ गया है। अब कितने कांग्रेसी कर्ज उतारने हैं, यह तो वक्त ही बताएगा, मगर पार्टी को जल्द ही अपने नेतृत्व का फैसला कर लेना चाहिए।
इसके अभाव में पार्टी शीर्ष स्तर पर अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है और इसी कारण असंतुष्ट नेताओं को प्रतिक्रिया देने का मौका मिल जाता है। हालांकि पार्टी के असंतुष्ट कहे जाने वाले नेता उदयपुर चिंतन शिविर में मौजूद थे, मगर इसमें से किसी ने वहां पर नेतृत्व का मुद्दा उठाया नहीं।
इसके पीछे एक कारण यह भी माना जा रहा है कि अभी राज्यसभा का चुनाव होना है और इसमें से कुछ नेता इसके दावेदार हैं। यही वजह है कि इन नेताओं ने अभी अनुशासन में रहना ही ठीक समझा है। पार्टी को इस बात पर भी चिंतन करना चाहिए कि राष्ट्रीय विषयों पर संगठन का रुख क्या रहे, यह स्पष्ट होना चाहिए।
हर मसले पर अवरोधक की भूमिका निभाना भी सही नहीं है। अच्छे लोकतांत्रिक देश में विपक्षी दल सरकार के अच्छे काम पर साथ भी देते हैं। बहुत ही कम मौके देखे गए हैं, जब किसी राष्ट्रीय मुद्दे पर कांग्रेस ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।
विश्वगुरु अनंत विचारक एकेपी पिंटू 😎

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